यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः ।
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः ॥
आखिर कब तक.. नारी शिकार होती रहेगी ? जैसा की उक्त श्लोक में दिया गया कि जहां नारी की पूजा की जाती है वहां देवता निवास करते है, और जहां नारी को सम्मान नहीं दिया जाता वहां देवता भी निवास नहीं करते है। यह कथन सर्वथा सत्य ही प्रतीत होता है। ऐसा कहने का मेरा अभिप्राय वर्तमान मानव की विचारधारा से है, जो महिलाओं को चिरकाल से बराबरी का दर्जा देने से कहीं न कहीं सकुचाते महसूस होते है।
महिलाएं और आंकड़े
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक भी दुनिया भर में लगभग 90 फीसदी महिलाएं और पुरुष, महिलाओं के प्रति किसी न किसी प्रकार का पूर्वाग्रह रखते है।
इस रिपोर्ट को सयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम(यूएनडीपी) के द्वारा विश्व के लगभग 80 फीसदी जनसंख्या वाले 75 देशों पर किया गया अध्ययन है,
जिसके अनुसार आज भी प्रति 10 व्यक्तियों में से 9 व्यक्ति किसी न किसी प्रकार की महिलाओं के प्रति दकियानूसी सोच रखते है।
यह विश्लेषण विश्व के कटु सत्य से रूबरू कराता है कि महिलाओं को समानता हासिल करने के मामले में आज भी अनगिनत बाधाओं का सामना करना पड़ता है।
जबकि पिछले कुछ वर्षों में बहुत कुछ बदला है फिर भी आज महिलाएं बहुत सी परेशानियों का सामना कर रहीं है।
महिलाओं ने खेल और अंतरिक्ष से लेकर राजनीतिक और कारोबार के संसार में अपनी क्षमता को सिद्ध किया है , के बावजूद भी महिलाओं के प्रति पूर्वाग्रह की स्तिथि कायम है।
यूएनडीपी की इस रिपोर्ट के अनुसार विश्व की जनसंख्या की 50 फीसदी आवादी का मानना है कि पुरुष श्रेष्ठराजनीतिक नेता है,
40 प्रतिशत से ज्यादा लोगों का मानना है कि पुरुष ज्यादा बेहतर कारोबारी है
इसके अलावा 28 प्रतिशत लोगों का मानना है कि पत्नि की पिटाई जायज है |
अफसोश की बात यह कि इसमें महिलाएं स्वंय भागीदार है। हांलाकि लगभग 30 देशों में महिलाओं के प्रति नजरिया बदला है।
लेकिन दुनिया के बडें हिससे आज भी असमानता कायम है।
यूएनडीपी की इस रिपोर्ट में पहले स्थान पर पाकिस्तान को रखा गया है, जबकि हमारा भारत इस रिपोर्ट में छठवें पायदान पर है।
सोच और समाज
दरअसल, सोच की दिशा न सिर्फ समाज में बदलाव की संभावना बनाती है
बल्कि आमजन में बदलावों की सजहता भी लाता है, विचार की यही दिशा आपका व्यवहार भी तय करता है।
कार्यस्थल से लेकर घर-परिवार तक , राय बनाने का यह भाव महिलाओं के प्रति अपनाए जाने वाले व्यवहार में दिखाई देता है।
वैसे भी हमारे यहां सामाजिक व्यवस्था की धुरी होने के बावजूद भी सबसे ज्यादा असमानता का शिकार महिलाएं ही होती है।
आज भी शादी कर घर बसाने के फैसले में बेटियों की राय को बेटों की राय के बराबर नहीं माना जाता।
अच्छी पढ़ी-लिखी और काबिल लड़कियों के पिता दहेज देने को विवश दिखाई देते हैं।
साथ ही कामकाजी मोर्चे पर भी अपनी क्षमता और योग्यता साबित करने के लिए कई अनकही-अनचाही परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है।
यह कहना उचित न होगा कि लैंगिक असमानता में महिलाएं पूरी तरह प्रभावित है।
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इस रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर के देशों में महिलाओं समान रूप से मतदान करती है,
फिर भी मात्र 24 प्रतिशत संसदीय सीटों पर महिलाएं चुनी गई है। इतना ही नहीं, 194 देशों में से मात्र 10 देशों की प्रमुख पद पर महिलाएं हैं।
इसके अलावा विश्व भर में समान काम के लिए समान वेतन के मामले में भी महिलाएं बहुत पीछे दिखाई देती है। साथ ही वरिष्ठ पदों पहुचने के कम अवसर मिलते है।
इसलिए यूएनडीपी ने सभी देशों से आग्रह किया कि वे इस प्रकार के भेद-भाव को खत्म करने का सकारात्मक कदम उठाएं।
यह सच है कि पिछले कुछ वर्षों में महिलाओं की परिस्थियों में परिवर्तन देखने मिले हैं, और एक सकारात्मक सोच को दर्शाता है।
अतः किसी देश में आमजन की सोच ही सामाजिक-पारिवारिक संस्कृति तैयार करती है।
इस सोच की दिशा ही वहां की आधी आबादी की स्थिति तय करती है।
कोरोना लॉकडाउन से प्रभावित असंगठित क्षेत्र को सरकार क्या भूल गई है?
आधी आबादी की दशा और दिशा समाज की मनोदशा से ही निर्धारित होगी,
Heyuno आपसे गुज़ारिश करता है, जुड़े अपने आस पास ऐसा माहौल बनाने में,
जो दे महिलाओ को एक सुरक्षित और सम्मानजनक स्थान
हमे बताये कैसा लगा आर्टिकल आखिर कब तक.. नारी शिकार होती रहेगी ?