खुदीराम बोस – गीता लिए फाँसी चढ़ने वाला युवा

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Khudiram Bose - Youngest Freedom Fighter (Image Source - Wikipedia)

खुदीराम बोस – गीता लिए फाँसी चढ़ने वाला युवा:
भारत की धरती अपने उन सपूतो के नाम से हमेशा पहचान पायेगी, जिन्होंने अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया इस मिटटी के लिए,
ऐसे ही एक सपूत को आज याद करने का दिन है, बात हो रही है खुदीराम बोस (3 December 1889 – 11 August 1908) की,
आज़ादी के नन्हे सिपाही जो सिर्फ उम्र में छोटे थे, इरादों में नहीं, आज के दिन उन्हें फांसी दी गयी थी |

छोटे क्रांतिकारी के बड़े कारनामे

बंगाल से आने वाले इस क्रन्तिकारी ने 17 साल में पहली गिरफ़्तारी दी थी, मगर अंग्रेज उन्हें ज्यादा दिन जेल में रख नहीं पाए,
नौवीं कक्षा से ही खुदी राम बोस ने स्वतंत्रता आंदोलनों में हिस्सा लेना शुरू कर दिया था |
उनका बलिदान इतना बुलंद रहा की आज भी लोक गीतों में उनका नाम दोहराया जाता है,
उनके बलिदान से प्रेरित होकर, लोग उनका नाम लिखी धोती पहनने लगे थे,

कानपुर में युवा क्रांतिकारियों ने उनका स्मारक बना के स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल होना शुरू किया, और कितने ही क्रांतिकारियों ने अपनी जान क़ुर्बान कर दी |

खुदीराम क्रन्तिकारी पार्टी के सदस्य बने, बंगाल के विभाजन के आंदोलन में भी वो सक्रिय थे |
बंगाल के क्रांतिकारी सत्येंद्रनाथ द्वारा लिखे ‘सोनार बांगला’ की प्रतियाँ खुदीराम ने इस प्रदर्शनी में बाँटी।
एक अंग्रेज सिपाही ने इन्हे पकड़ने की कोशिश की मगर विफल रहा, खुदीराम प्रदर्शनी से बच कर भाग निकले
राजद्रोह के आधार पर खुदी राम पर मुक़दमा चला, मगर गवाही न मिलने के चलते उन्हें रिहा करना पड़ा,
खुदीराम के साहसिक कदम यही नहीं थमे, उन्होंने बंगाल के गवर्नर की ट्रेन पर हमला किया,
साथ ही दो अंग्रेज अधिकारियो वाटसन और फुलर पर भी बम से हमला किया,
ये सभी गतिविधियाँ उनके निर्भीक और स्वतंत्रता के लिए उनकी भावनाओ को दर्शाती है,
अहिंसा के विपरीत उन्होंने क्रन्तिकारी मार्ग पर चलकर देश की आज़ादी का सपना देखा,
जिसे कितने ही क्रांतिकारियों के बलिदानों ने पूरा किया |

खुदी राम बोस किंग्सफोर्ड, जो की सख्त सजा देने के लिए जाना जाता था,
उसपर दो बार हमला करने में असफल रहे और दूसरी बार में उन्हें गिरफ्तार कर के फांसी की सजा सुनाई गयी,
वही उनके दूसरे साथी प्रफुल चकी ने खुद को गोली मार कर शहीद कर दिया था |

गीता और बलिदान

खुदीराम बोस को जब फाँसी की सजा सुनाई गयी तो,
उनके चेहरे पर कोई दर या घबराहट वाले भाव नहीं थे,
उल्टा उनसे जब पूछा गया की अपनी सफाई में कुछ कहना है,
तो उन्होंने कहा की अगर समय मिलता तो वो जज साहब को भी बम बनाने का तरीका बताना चाहेंगे |
11 अगस्त को फाँसी के वक़्त वो हाथ में गीता लिए हुए फाँसी के फंदे से झूल गए थे, ऐसा करने वाले भारत में ही पाए जायेंगे |
हमारे देश के इस सबसे कम उम्र और बुलंद हौसले वाले,
क्रांतिकारी को Heyuno आज उनके शहीदी दिवस पर याद कर रहा है, और उनके बलिदान को हमेशा ऐसे ही याद रखेगा |
कैसा लगा आपको “खुदीराम बोस – गीता लिए फाँसी चढ़ने वाला युवा” जरूर बताये |

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