श्रद्धांजलि: खय्याम
एक फनकार के जाने से संगीत की सदी का खत्म हो जाना संभव है, खय्याम साहब एक ऐसे ही शख्स के रूप में जाने जायेंगे | कल रात वो दुनिया से अलविदा कह गए|
खय्याम पंजाब (पाकिस्तान) से दिल्ली संगीत सिखने के लिए गए| बाबा चिश्ती से संगीत की समझ हासिल करी, जो की पाकिस्तान में संगीतकार थे| 17 साल की छोटी उम्र में खय्याम चिश्ती के सहायक बन गए|
पंडित अमरनाथ ने भी खय्याम को संगीत की तालीम दी|
“शर्मा जी- वर्मा जी” के नाम से उन्होंने अपनी संगीतकार जोड़ी बनाई, और 1948 में ‘हीर राँझा’ में संगीत दिया|
कुछ दिनों बाद ये जोड़ी अलग हो गयी, क्यूंकि वर्मा जी, पाकिस्तान चले गए |
1950 में आयी ‘बीवी’ में उनका बनाया गीत ‘अकेले में वो घबराते तो होंगे’ सफल हुआ, जिसे आवाज़ दी थी मोहम्मद रफ़ी ने |
उसके बाद ‘शाम- ऐ ग़म की कसम’ (फुटपाथ-1953 ) ‘तलत मेहमूद’ की आवाज़ में भी उनके करियर में सफलता लेकर आया |
‘फिर सुबह होगी’ ‘शोला और शबनम’ ‘आखरी खत’ ‘शगुन’ ये सभी फिल्में उनके संगीत से सजी |
70 के दशक में ‘कभी कभी‘ के लिए वो ‘यश चोपड़ा‘ और ‘साहिर लुधयानवी‘ से जुड़े, जिसका संगीत आज भी लोकप्रिय है |
खय्याम साहब के सदाबहार नगमे
“कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता है”
“मैं पल दो पल का शायर हूँ”
“तेरे चेहरे से नज़र नहीं हटती”
“फिर छिड़ी रात बात फूलों की”
“चांदनी रात में”
“हज़ार राहे मुड़ के देखी”
“करोगे याद तो हर बात याद आएगी”
“दिखाई दिए यूँ”
“ऐ दिल-ऐ-नादाँ”
“आजा रे ओ मेरे दिलबर आजा”
“कभी किसी को मुक़मल जहाँ नहीं मिलता”
ये नगमे आज भी लोकप्रिय है |
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“Khayyam Jagjeet Kaur KPG Charitable Trust” की स्थापना करके उन्होंने अपनी सारी जमापूंजी, दान कर दी |
2011 में उन्हें पद्मा भूषण सम्मान दिया गया, ‘उमराव जान’ के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार भी प्राप्त हुआ |
28 जुलाई से वो मुंबई के एक अस्पताल में भर्ती थे, कल रात खय्याम दुनिया से अलविदा कह गए |
श्रद्धांजलि: खय्याम साहब को