श्रीकृष्ण का दर्शन : एक विश्लेषणात्मक दृष्टि

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जन्माष्टमी विशेष

जन्माष्टमी विशेष : श्रीकृष्ण भारतीय संस्कृति के ऐसे अद्वितीय पात्र हैं जिन्हें केवल भगवान कहकर सीमित नहीं किया जा सकता। वे एक दार्शनिक, राजनीतिज्ञ, कूटनीतिज्ञ, प्रेमी, मित्र, मार्गदर्शक और सबसे बढ़कर – एक सम्पूर्ण मनुष्य के प्रतीक हैं। उनके व्यक्तित्व को समझना दरअसल भारतीय जीवन-दर्शन को समझने जैसा है।

बाल रूप से लेकर गीता के प्रवक्ता तक

कृष्ण का जीवन विरोधाभासों से भरा हुआ है। गोपियों के संग बांसुरी बजाते वही कृष्ण महाभारत के युद्धभूमि में अर्जुन को धर्म का गूढ़ संदेश देते हैं। एक ओर वे माँ यशोदा की गोदी में मासूम बालक हैं, दूसरी ओर दुर्योधन जैसे पराक्रमी शासक को भी राजनय से मात देने वाले कूटनीतिज्ञ। यही बहुरंगी व्यक्तित्व उन्हें साधारण देवता से कहीं ऊपर ले जाता है।

धर्म और कर्म का संगम

जन्माष्टमी विशेष: गीता का संदेश यह बताता है कि कृष्ण धर्म को कठोर नियमों में नहीं बाँधते। उनके लिए धर्म का अर्थ है – परिस्थिति के अनुसार सबसे न्यायपूर्ण और सृजनशील निर्णय लेना। वे कर्म की प्रधानता को स्वीकार करते हैं, परंतु फल की आसक्ति से विरक्त रहने का उपदेश देते हैं। यह दर्शन मनुष्य को जीवन की उलझनों में सक्रिय रहते हुए भी भीतर से संतुलित बने रहने का मार्ग दिखाता है।

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मानवता का पाठ

कृष्ण का एक बड़ा संदेश यह है कि जीवन केवल तपस्या या विरक्ति का नाम नहीं है। वे रसिक हैं, संगीत और नृत्य में रमते हैं, प्रेम को उत्सव की तरह जीते हैं। उनके दर्शन में आनंद और जिम्मेदारी दोनों साथ-साथ चलते हैं। यही कारण है कि कृष्ण भक्त को संन्यास का नहीं, बल्कि जीवन को भरपूर जीने का साहस देते हैं।

राजनीति और यथार्थवाद

कृष्ण आदर्शवाद के साथ यथार्थवाद भी सिखाते हैं। महाभारत में उन्होंने बार-बार यह सिद्ध किया कि अन्याय के सामने तटस्थ रहना भी अन्याय को बढ़ावा देना है। शांति वार्ता असफल होने पर उन्होंने युद्ध का पक्ष लिया, लेकिन उद्देश्य केवल धर्म की रक्षा रहा। यह हमें यह सिखाता है कि जीवन में समझौते आवश्यक हैं, पर जब न्याय और असत्य आमने-सामने खड़े हों तो निर्णायक होना पड़ता है।

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आज के समय में कृष्ण

आधुनिक समाज में, जहाँ व्यक्ति या तो भोग में उलझा है या निराशा में डूबा है, कृष्ण का दर्शन एक संतुलित मार्ग दिखाता है। वे कहते हैं – जीवन का अर्थ है कर्मशीलता, आनंद, प्रेम और न्याय का संगम। यदि हम केवल उनके “भगवान” रूप पर अटक जाएँ तो उनका असली संदेश खो देंगे। लेकिन अगर हम उन्हें एक मार्गदर्शक, एक मित्र और एक दार्शनिक की तरह देखें, तो हमें जीवन जीने की कला समझ आती है।


श्रीकृष्ण केवल पूजनीय देवता नहीं, बल्कि भारतीय मानस की जीवित चेतना हैं। उनके दर्शन में कठोरता नहीं, लचीलापन है; केवल उपदेश नहीं, बल्कि जीवन जीने की कला है। वे हमें यह सिखाते हैं कि इंसान अपने भीतर आनंद, प्रेम और न्याय की ज्योति जलाकर ही सच्चे अर्थों में ‘मानव’ बन सकता है।


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