सड़क से स्टार बनने का सपना
Noise or Knowledge: आज के समय में सोशल मीडिया किसी को भी “सड़क से स्टार” बना सकता है। कोई साधारण डांस वीडियो, किसी मज़ाकिया हरकत का क्लिप, या अचानक बोले गए एक डायलॉग को करोड़ों लोग देख लेते हैं और व्यक्ति रातों-रात सेलिब्रिटी बन जाता है। लेकिन सवाल यह है कि क्यों हल्का-फुल्का कंटेंट आग की तरह फैल जाता है जबकि गहरा और बौद्धिक कंटेंट अक्सर पीछे रह जाता है?
क्या यह जनता की पसंद है, कोई कॉरपोरेट षड्यंत्र है, या फिर यह केवल हमारे दिमाग़ के मनोविज्ञान का खेल है?
1. दिमाग़ का खेल: क्यों हमें “Noise” ज्यादा भाता है
Noise or Knowledge: सोशल मीडिया की असली ताकत हमारे दिमाग़ की कमजोरियों को समझना और उनका इस्तेमाल करना है।
- डोपामिन हिट: छोटे-छोटे, मज़ेदार या चौंकाने वाले कंटेंट से हमें तुरंत डोपामिन (खुशी का हार्मोन) मिलता है। यह वही एहसास है जो जुआ खेलने या लॉटरी टिकट खरीदने से मिलता है।
- Relatability Factor: जब कोई “आम आदमी” रातों-रात स्टार बनता है, तो लोग खुद को उससे जोड़ लेते हैं—“अगर वो कर सकता है, तो मैं क्यों नहीं?”
- Attention Span का पतन: पहले हम अख़बार या किताब पढ़ने में 30 मिनट लगाते थे, आज Reels और Shorts ने हमारा ध्यान कुछ सेकंड का कर दिया है। नतीजा—गहरा कंटेंट पढ़ने/देखने का धैर्य कम हो गया है।
यानी हमारा दिमाग़ फास्ट-फूड कंटेंट चाहता है, जबकि बौद्धिक सामग्री “धीमी आंच पर पका भोजन” है।
2. एल्गोरिदम: असली मास्टरमाइंड
सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म्स (जैसे Instagram, YouTube, TikTok) का लक्ष्य है:
👉 आपको स्क्रीन से जितना ज्यादा चिपकाए रखा जा सके, उतना अच्छा।
- वायरल वीडियो लोगों को स्क्रॉल करते रहने पर मजबूर करता है।
- भावनात्मक, मज़ेदार या विवादित कंटेंट “एंगेजमेंट” बढ़ाता है।
- बौद्धिक या शोध-आधारित कंटेंट अपेक्षाकृत “धीमा” होता है और ज्यादा समय माँगता है, इसलिए एल्गोरिदम उसे कम प्राथमिकता देता है।
असल में एल्गोरिदम ही तय करता है कि कौन स्टार बनेगा और कौन गुमनाम रहेगा।
3. बड़ी कंपनियाँ और “लॉटरी साइकोलॉजी”
यहां एक मार्केटिंग गिमिक भी छुपा है। प्लेटफ़ॉर्म्स लगातार यह नैरेटिव फैलाते हैं:
👉 “किसी भी आम इंसान को रातों-रात स्टार बनाया जा सकता है।”
यह ठीक वैसा ही है जैसे लॉटरी कंपनियाँ कहती हैं: “कोई भी करोड़पति बन सकता है।”
- लाखों लोग टिकट खरीदते हैं, पर जीतता केवल एक।
- लाखों लोग कंटेंट बनाते हैं, पर स्टार वही बनते हैं जिन्हें एल्गोरिदम पुश करता है।
इससे प्लेटफ़ॉर्म्स को दो फ़ायदे मिलते हैं:
- ज्यादा कंटेंट—क्योंकि हर कोई स्टार बनने की कोशिश करता है।
- ज्यादा डेटा और विज्ञापन—जितना ज्यादा लोग प्लेटफ़ॉर्म पर रहेंगे, उतनी बड़ी कंपनियों की कमाई।
4. क्या यह साज़िश है?
सीधी भाषा में कहें तो—यह कोई “डार्क कॉन्सपिरेसी” नहीं, बल्कि संगठित बिज़नेस इकोसिस्टम है।
- प्लेटफ़ॉर्म्स जानते हैं कि लोग “Noise” को “Knowledge” से ज्यादा पसंद करेंगे।
- विज्ञापनदाता वही कंटेंट चाहते हैं, जिसे ज्यादा लोग देख रहे हों।
- नतीजा: वही वायरल होता है, जो हल्का, तेज़ और मनोरंजक हो।
5. असली नुकसान: समाज की सोच पर असर
यहीं से असली खतरा शुरू होता है।
- Shallow Culture: लोग तर्क और विचार से ज्यादा “ट्रेंड्स” को महत्व देने लगते हैं।
- Fake Stardom: जिनकी असली प्रतिभा है, वे हाशिए पर रह जाते हैं।
- Democracy & Education: जब जनता “Noise” पर जी रही हो और “Knowledge” को अनदेखा कर रही हो, तो लोकतंत्र और शिक्षा दोनों कमजोर हो जाते हैं।
आज स्थिति यह है कि “सोशल मीडिया स्टार” का प्रभाव कई बार “पब्लिक इंटलेक्चुअल” से भी ज्यादा हो जाता है।
6. केस स्टडी: TikTok और वायरल कल्चर
TikTok (भारत में अब बैन) ने यह मॉडल दुनिया को सबसे साफ़ दिखाया।
- कोई भी साधारण वीडियो एक रात में करोड़ों व्यू पा सकता था।
- लोग “स्टारडम” के पीछे भागते गए, जबकि कंपनी अरबों डॉलर कमाती रही।
- लेकिन गहरा, ज्ञान आधारित कंटेंट उस “तेज़ बहाव” में खो गया।
Instagram Reels और YouTube Shorts अब वही कर रहे हैं।
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7. भारत का परिप्रेक्ष्य
भारत जैसे देश में यह और खतरनाक है क्योंकि:
- यहाँ युवा आबादी सबसे ज्यादा है।
- रोज़गार की कमी के बीच “स्टारडम” को नौकरी का विकल्प समझा जा रहा है।
- भाषाई विविधता में हल्का कंटेंट आसानी से फैलता है, जबकि बौद्धिक कंटेंट सीमित समूहों तक सिमट जाता है।
8. क्या रास्ता है?
अगर हम चाहते हैं कि “Knowledge” भी उतना ही महत्व पाए जितना “Noise”, तो कुछ कदम ज़रूरी हैं:
- यूज़र की जिम्मेदारी: हमें खुद तय करना होगा कि हम किसे लाइक, शेयर और फॉलो करते हैं।
- क्रिएटर्स का संतुलन: कंटेंट बनाने वालों को “ट्रेंड” और “ज्ञान” का संतुलन साधना होगा।
- प्लेटफ़ॉर्म की पारदर्शिता: सरकार और समाज को कंपनियों से पूछना चाहिए कि उनके एल्गोरिदम समाज के ज्ञान और मानसिक स्वास्थ्य पर क्या असर डाल रहे हैं।
- शिक्षा प्रणाली में बदलाव: बच्चों को डिजिटल लिटरेसी सिखाना ज़रूरी है ताकि वे समझें कि वायरल कंटेंट हमेशा सही या मूल्यवान नहीं होता।
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समापन: Noise बनाम Knowledge
आज सोशल मीडिया ने हमें एक दुविधा में खड़ा कर दिया है।
- एक ओर है Noise—तेज़, चटपटा, क्षणिक और व्यसनी।
- दूसरी ओर है Knowledge—धीमा, गहरा, लेकिन स्थायी और उपयोगी।
अगर हम समाज के रूप में “Noise” को ही प्राथमिकता देते रहे, तो हम मनोरंजन की भीड़ में खोकर आलोचनात्मक सोच खो देंगे। लेकिन अगर हम “Knowledge” को बढ़ावा देंगे, तो यही डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म हमें और मजबूत, जागरूक और प्रगतिशील बना सकते हैं।
👉 सवाल यह है कि हम किसे चुनते हैं: Noise या Knowledge?