दूरदर्शन की अमर कहानियाँ: वो 10 शो जिनकी गूँज आज भी दिलों में है

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दूरदर्शन की अमर कहानियाँ: आज ott के ज़माने में कंटेंट तो बहुत है लेकिन अच्छा और मानवीय मूल्यों से जुड़े हुए कार्यक्रम कम है, tvf ने जरूर कोशिश कर के “पंचायत” जैसे कुछ कार्यक्रम बनाये जोकि दूरदर्शन की सुनहरी यादों जैसा था और आज भी गाँव और उनकी समस्या वैसी ही है, बस मोबाइल पहुँच गया है, जिसने लोगों को अलग अलग देखना सिखा दिया है, सामूहिक रूप से कार्यक्रम न देखने लायक बन रहे है, दूसरी तरफ साउथ इंडस्ट्री थोड़ा गाली और अश्लीलता से बची हुई है बाकि तो सब जगह अच्छे और प्रगतिशील समाज का चित्रण गाली और अश्लीलता हो गया है, ऐसे में कौन किसी को कुछ दिखायेगा|


कहानी कहने की कला भी बाजारवाद के दबाव में घुट रही है और लोग भी ये समझ रहे है, बॉलीवुड को कुछ समय से बायकाट कल्चर ने ख़तम सा कर दिया है, अच्छी कहानियां वहां भी है लेकिन गिनती की बाकि सब कुछ बिखरा हुआ है, और ट्रेंड सेट करने का जिम्मा अब मीम पर है, ऐसे में कुछ कालजयी कहाँ से रचा जायेगा, लेकिन एक दौर था जब कार्यक्रम और दूरदर्शन ने अच्छी कहानियाँ दिखा रहा था, फिर जमाना आया प्राइवेट चैनल का और कंटेंट की एक नयी पीढ़ी आई जिसमे कुछ दिन तो सब सही चला फिर सास बहु के झगड़े ही दिखने लगे टीवी पर और उसकी एक नयी पारी स्मृति ईरानी ने फिर से शुरू करी है क्यूंकि अब वो सक्रिय राजनीति में मंत्री पद पर नहीं है
एक ज़माने में हमने उन्हें सिलिंडर के दाम के साथ मिहिर के लिए लड़ते देखा अब नयी पारी में वो क्या दिखाए पता नहीं, चलिए आज ज़ेन जी को पुराने दौर की जानकारी से अवगत कराये |


टीवी और ओटीटी पर कंटेंट की बाढ़ है। एक क्लिक में सैकड़ों शोज़ सामने आ जाते हैं। लेकिन 80 और 90 के दशक का वह दौर कुछ और ही था, जब दूरदर्शन ही एकमात्र खिड़की था और हर हफ़्ते आने वाले कार्यक्रम पूरे देश के लिए किसी उत्सव से कम नहीं लगते थे।

दूरदर्शन की अमर कहानियाँ: रविवार की सुबह सड़कों पर सन्नाटा, पड़ोसियों का एक ही घर में इकट्ठा होना, टीवी के सामने तख़्त और दरी बिछाकर बैठना — यह सब हमारी सांस्कृतिक स्मृतियों का हिस्सा है। अब वो संस्कृति काल के गाल में समा गयी लगती है |
इन शो ने सिर्फ़ मनोरंजन ही नहीं किया, बल्कि पूरे समाज की सोच बदली और पीढ़ियाँ गढ़ी। लोगों ने मानवीय मूल्य पहचाने कार्यक्रमों से उन्हें जिया उनको लेके बड़े हुए सपने देखना शुरू किया परिवार कैसे होते है ये जाना, सुपर हीरो मिले लोगों को, जादुई कहानियां हैरी पॉटर से पहले अलिफ़ लैला जैसे सीरियल ने बताई, गेम ऑफ़ थ्रोन से पहले चंद्रकांता भी एक भारतीय कालजयी रचना रही जो भारतीय मूल्य के साथ इरफ़ान जैसे बड़े कलाकारों को घर तक पहचान दिलाने वाली बनी, राम का मतलब अरुण गोविल हो गया आज भी लोग उनके सामने दंडवत हो जाते है अब वो खुद संसद में है, देखिये क्या करते है टीवी के राम आम जन मानस के लिए, स्त्री विमर्श आरोहण जैसे कार्यक्रमों से बना सच्चे अर्थों में, चलिए शुरु करते है:

आइए उन 10 अमर कार्यक्रमों की दुनिया में लौटते हैं —


1. रामायण (1987, रामानंद सागर)

रामानंद सागर की रामायण ने भारतीय टेलीविज़न के इतिहास में वह छाप छोड़ी जिसे मिटाना असंभव है।
उस दौर में जब एपिसोड आता था, लोग स्नान करके, अगरबत्ती जलाकर टीवी के आगे बैठ जाते थे। टीवी गिने चुने होते थे मोहल्ले में तो लोग समूह में देखते थे कार्यक्रम, इंतज़ार करते थे अगले एपिसोड का, कहानी पे चर्चा करते थे | कोरोना काल में दूरदर्शन की रेटिंग टॉप में पहुँच गयी इसी धारावाहिक से और ये आज भी लोग देखना पसंद करते है |

  • किरदार: अरुण गोविल (राम), दीपिका चिखलिया (सीता) और दारा सिंह (हनुमान) घर-घर में पूजे जाने लगे।
  • सामाजिक असर: कहा जाता है कि रामायण के समय मंदिरों में भीड़ कम हो जाती थी क्योंकि लोग घर पर टीवी देख रहे होते थे।
  • क्यों आज भी प्रासंगिक: मर्यादा पुरुषोत्तम राम का आदर्श, भाईचारे और धर्म की जीत का संदेश — यह सब समाज के हर दौर में ज़रूरी है।

2. महाभारत (1988, बी.आर. चोपड़ा)

अगर रामायण ने आस्था जगाई तो महाभारत ने सोचने पर मजबूर किया।
“मैं समय हूँ…” से शुरू होने वाला यह धारावाहिक आज भी रोंगटे खड़े कर देता है।

  • किरदार: भीष्म की प्रतिज्ञा, कर्ण का दानवीर रूप, दुर्योधन का अहंकार और अर्जुन की दुविधा — हर किरदार मानवीय कमजोरियों और ताक़तों का आईना है।
  • Trivia: इस शो का टाइटल सॉन्ग आज भी भारत का सबसे यादगार टीवी थीम माना जाता है।
  • क्यों आज भी प्रासंगिक: सत्ता संघर्ष, नैतिक द्वंद्व और गीता का संदेश — यह सब इंसानी सभ्यता में हमेशा जीवित रहेगा।

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3. हम लोग (1984)

दूरदर्शन की अमर कहानियाँ : भारत का पहला टीवी सीरियल, जिसने मिडिल क्लास की ज़िंदगी को घर-घर पहुँचाया।
हर परिवार इसमें खुद को देखता था — बेरोज़गार बेटा, पढ़ाई में जूझती बेटियाँ, माँ-बाप के सपने और संघर्ष।

  • किरदार: बड़की, लाजवंत, जोगेश्वर, और उनके रोज़मर्रा के झगड़े।
  • सामाजिक असर: इस सीरियल के अंत में अशोक कुमार “हम लोग” पर टिप्पणी करते थे, जिससे दर्शक सीधे जुड़ जाते थे।
  • क्यों आज भी प्रासंगिक: आज भी लाखों मिडिल क्लास परिवार इन्हीं चुनौतियों से जूझते हैं।

4. बुनियाद (1986)

यह शो विभाजन की त्रासदी पर आधारित था। मास्टर हवेलीराम और उनके परिवार की गाथा दर्शकों की आँखों में आँसू ले आती थी।

  • किरदार: हवेलीराम (अलोक नाथ), लाजो जी और उनका बिखरा हुआ परिवार।
  • सामाजिक असर: भारत-पाक के विभाजन की पीड़ा को घर-घर तक पहुँचाया।
  • क्यों आज भी प्रासंगिक: पलायन और जड़ों से जुड़ाव का संकट आज भी प्रवासी भारतीयों की ज़िंदगी में मौजूद है।

सबसे लम्बे चलने वाले सीरियल, लास्ट वाला तो सबने देखा होगा

5. मालगुडी डेज़ (1986)

आर.के. नारायण की कहानियों पर आधारित यह धारावाहिक मालगुडी कस्बे की मासूम दुनिया दिखाता था।

  • किरदार: छोटे स्वामी की शरारतें, उसके पिता की सख़्ती और कस्बे के लोगों का जीवन।
  • Trivia: इस शो का टाइटल ट्रैक आज भी सुनते ही नॉस्टैल्जिया जगाता है।
  • क्यों आज भी प्रासंगिक: यह हमें याद दिलाता है कि सादगी में भी जीवन की सुंदरता है।

6. फ़ौजी (1988)

शाहरुख़ ख़ान का पहला शो, जिसने युवाओं को सेना की ज़िंदगी से रूबरू कराया।

  • किरदार: लेफ्टिनेंट अभिमन्यु राय (शाहरुख़ ख़ान) — एक नटखट लेकिन बहादुर जवान।
  • सामाजिक असर: इस शो ने युवाओं को आर्मी की ओर आकर्षित किया।
  • क्यों आज भी प्रासंगिक: अनुशासन, बलिदान और भाईचारा सेना की पहचान है, जो आज भी उतना ही अहम है।

7. शक्तिमान (1997)

भारत का पहला टीवी सुपरहीरो — हर बच्चे का रोल मॉडल।

  • किरदार: गंगाधर, एक मासूम पत्रकार और शक्तिमान, एक आदर्श नायक।
  • Trivia: शो के चलते बच्चों ने शक्तिमान की नकल में छत से कूदना शुरू कर दिया था, तब मुकेश खन्ना को विशेष संदेश देना पड़ा।
  • क्यों आज भी प्रासंगिक: जब सोशल मीडिया के “नेगेटिव हीरोज़” बच्चों को प्रभावित करते हैं, शक्तिमान जैसी सच्चाई और ज़्यादा ज़रूरी है।

8. विक्रम और बेताल (1985)

लोककथाओं का अनोखा अंदाज़ — राजा विक्रमादित्य और बेताल की कहानियाँ।

  • सामाजिक असर: हर कहानी का अंत नैतिक शिक्षा से होता था।
  • क्यों आज भी प्रासंगिक: यह हमें सिखाता है कि ज़िंदगी में हर फैसले का एक नैतिक पक्ष होता है।

9. सुरभि (1990)

रेनुका शहाणे और सिद्धार्थ काक द्वारा होस्ट किया गया यह शो भारत की कला और संस्कृति का संगम था।

  • Trivia: इस शो को सबसे ज़्यादा postcards आने का लिम्का बुक रिकॉर्ड है।
  • सामाजिक असर: सुरभि ने भारत की विविधता को घर-घर तक पहुँचाया।
  • क्यों आज भी प्रासंगिक: आज भी भारतीय संस्कृति की असली झलक देखने के लिए लोग इस शो को याद करते हैं।

10. व्योमकेश बक्शी (1993)

भारतीय टीवी का सबसे चर्चित जासूस।

  • किरदार: रजित कपूर का निभाया ‘व्योमकेश’ और केके रैना का ‘अजित’।
  • सामाजिक असर: इसने दर्शकों को बताया कि अपराध सुलझाना सिर्फ़ एक्शन नहीं, बल्कि तर्क और लॉजिक का काम है।
  • क्यों आज भी प्रासंगिक: जब क्राइम शोज़ सनसनी पर टिके हों, व्योमकेश हमें सिखाता है कि असली ताक़त दिमाग़ में है।

दूरदर्शन की अमर कहानियाँ: आज और तब का फर्क

तब — लोग हफ़्ते भर इंतज़ार करते थे, मोहल्ला एक साथ बैठकर देखता था।
आज — हम एक सीज़न एक रात में binge-watch कर लेते हैं, लेकिन वह इंतज़ार, वह सामूहिक अनुभव खो गया है।


The Trolling Culture: A Digital Plague on Society

क्यों आज भी याद आते हैं ये शो?

दूरदर्शन के इन कार्यक्रमों ने हमें हँसाया, रुलाया, सोचने पर मजबूर किया और एक बेहतर इंसान बनने की सीख दी।
आज जब कंटेंट की बाढ़ है, तब भी इन शो का जादू हमें याद दिलाता है —

“असली शो वही हैं, जो हमें इंसानियत और रिश्तों की क़ीमत सिखाएँ।”


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