भ्रष्टाचार मुक्त भारत – एक अधुरा सपना

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भ्रष्टाचार मुक्त भारत – एक अधुरा सपना


भ्रष्टाचार मुक्त भारत: भारत में करप्शन पर जब भी बात होती है, मुझे सबसे पहले इसका नैतिक पहलु सबसे ज्यादा परेशान करता है, क्यूंकि नैतिक मूल्य किसी भी समाज में सबसे ज्यादा प्रभावी पक्ष होते है और ये कोड ऑफ़ कंडक्ट का हिस्सा भी है एक जिम्मेदार सिस्टम का फिर भी सिस्टम के लूप होल्स का फायदा उठा के लोग करप्शन और न जाने क्या क्या इस सिस्टम में बैठ के कर रहे है, एक असहाय समाज एक सशक्त राष्ट्र का निर्माण नहीं कर सकता न ही एक आदर्श स्थिति तक पहुँच सकता है|

भारत में जब भी प्रगति और विकास की चर्चा होती है, भ्रष्टाचार एक ऐसी बाधा है जो हर बहस में सामने आ जाती है। यह सिर्फ़ एक शब्द नहीं, बल्कि ऐसा अनुभव है जिसे लगभग हर भारतीय ने झेला है। कभी ड्राइविंग लाइसेंस बनवाने के लिए, कभी ज़मीन के काग़ज़ पर दस्तख़त कराने के लिए, कभी अस्पताल में भर्ती होने के लिए—हर जगह किसी न किसी रूप में रिश्वत देनी पड़ती है। यह बीमारी अब इतनी गहरी हो चुकी है कि लोग इसे सामान्य मानकर चलने लगे हैं।

समस्या यह है कि भ्रष्टाचार केवल प्रशासनिक स्तर तक सीमित नहीं है। यह एक संस्कृति बन चुकी है। हमें यह सिखा दिया गया है कि अगर “काम जल्दी चाहिए तो पैसे दो।” एक तरह से यह सिस्टम की भाषा बन गई है। इस स्थिति में सवाल यह उठता है कि क्या भारत सचमुच इस बीमारी से कभी निजात पा सकेगा?

आंदोलन और टूटी उम्मीदें

2011 का “इंडिया अगेंस्ट करप्शन” आंदोलन आज भी बहुतों की स्मृतियों में ताज़ा है। जब अन्ना हज़ारे, अरविंद केजरीवाल और किरण बेदी जैसे चेहरे सामने आए और जनता ने सड़कों पर उतरकर लोकपाल की मांग की। उस समय ऐसा लगा था कि भारत एक नई दिशा में कदम रखने जा रहा है। मगर समय के साथ यह आंदोलन राजनीति में बदल गया। लोकपाल कानून बना लेकिन उसका असर ज़मीन पर न के बराबर दिखा। और विडंबना यह है कि जिस आंदोलन ने भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाई थी, उसी से निकले नेता आज खुद भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे हुए हैं। जनता के मन में यह संदेश गया कि शायद भ्रष्टाचार मिटाना असंभव है।

बड़े घोटाले: जहाँ सिस्टम खोखला हुआ

अगर हम हाल के दशकों के बड़े घोटालों को देखें तो यह साफ़ हो जाता है कि भ्रष्टाचार सिर्फ़ कुछ बाबुओं की रिश्वत तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सत्ता और कारोबार के गठजोड़ से पैदा होता है।

2G स्पेक्ट्रम घोटाला इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। 2008 में मोबाइल कंपनियों को स्पेक्ट्रम लाइसेंस बेहद कम दामों पर बाँटे गए। सीएजी की रिपोर्ट के अनुसार इसमें देश को लगभग 1.76 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। यह सिर्फ़ पैसों की चोरी नहीं थी, बल्कि इसने देश की नीति-निर्माण प्रक्रिया की ईमानदारी पर सवाल खड़े किए।

इसके बाद आया कोयला घोटाला, जिसे ‘कोलगेट’ कहा गया। यहाँ भी सरकार पर आरोप लगे कि उसने निजी कंपनियों को मनमाने ढंग से कोयला ब्लॉक बाँट दिए। सुप्रीम कोर्ट को हस्तक्षेप करना पड़ा और कई आवंटन रद्द करने पड़े।

फिर व्यापम घोटाला सामने आया जिसने पूरे देश को झकझोर दिया। यह घोटाला मध्य प्रदेश में मेडिकल और अन्य प्रोफेशनल परीक्षाओं में हुआ, जहाँ बड़े पैमाने पर नकल, फर्जीवाड़ा और सीटों की खरीद-फरोख्त हुई। सबसे चौंकाने वाली बात यह थी कि इस मामले से जुड़े दर्जनों गवाह और संदिग्ध संदिग्ध परिस्थितियों में मौत के शिकार हो गए। यह केस दिखाता है कि भ्रष्टाचार केवल पैसे का खेल नहीं है, यह इंसानों की जान भी ले सकता है।

इन बड़े घोटालों से यह साफ़ होता है कि जब राजनीति और व्यापार आपस में मिल जाते हैं तो भ्रष्टाचार पूरे तंत्र को खोखला कर देता है।

छोटे स्तर का भ्रष्टाचार: रोज़मर्रा की जद्दोजहद

लेकिन भ्रष्टाचार सिर्फ़ बड़े स्तर पर ही नहीं, छोटे-छोटे रोज़मर्रा के कामों में भी गहराई से मौजूद है। कोई व्यक्ति अगर ड्राइविंग लाइसेंस बनवाने जाता है, तो आरटीओ कार्यालय में यह संकेत साफ़ मिलता है कि “अगर जल्दी चाहिए तो कुछ खर्च करना पड़ेगा।” अस्पतालों में भी यही हाल है, जहाँ इलाज मुफ्त होना चाहिए, वहाँ डॉक्टर और स्टाफ़ बिना “सेवा शुल्क” के ठीक से ध्यान नहीं देते।

गाँवों में किसान जब अपनी ज़मीन का रिकॉर्ड दुरुस्त कराने के लिए तहसील जाता है तो उसे महीनों तक दौड़ाया जाता है। जब तक जेब से कुछ न निकले, तब तक फाइल आगे नहीं बढ़ती। गरीब आदमी, जिसके पास रिश्वत देने के लिए पैसे नहीं हैं, उसका काम अक्सर अधूरा रह जाता है। यह केवल आर्थिक समस्या नहीं है, यह लोगों की गरिमा और आत्मसम्मान से खिलवाड़ है।

तकनीक और उसकी सीमाएँ

भ्रस्टाचार मुक्त भारत: डिजिटल इंडिया को भ्रष्टाचार के खिलाफ एक बड़ी उम्मीद के तौर पर देखा गया। कई काम अब ऑनलाइन होने लगे हैं, जिससे बिचौलियों का दख़ल कम हुआ है। लेकिन वास्तविकता यह है कि अंतिम निर्णय लेने वाला आज भी इंसान ही है। पासपोर्ट कार्यालय में आप ऑनलाइन फ़ॉर्म भर सकते हैं, लेकिन पासपोर्ट तब तक जारी नहीं होगा जब तक अधिकारी की फाइल पर साइन न हो। यही वह जगह है जहाँ रिश्वत की गुंजाइश बनी रहती है। तकनीक मददगार ज़रूर है, लेकिन यह तब तक अधूरी है जब तक इंसानों की मानसिकता और जवाबदेही नहीं बदलेगी।

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भ्रष्टाचार का मानवीय पक्ष

भ्रष्टाचार की चर्चा अक्सर अरबों-खरबों के घोटालों के संदर्भ में होती है, लेकिन असल दर्द आम आदमी का है। एक मज़दूर जो बीमार पत्नी का इलाज कराने के लिए सरकारी अस्पताल जाता है, और वहाँ उसे दवा के लिए भी अलग से पैसे देने पड़ते हैं—उसकी पीड़ा को कोई आँकड़ा नहीं माप सकता। एक बेरोज़गार युवक जो नौकरी पाने के लिए रिश्वत देने पर मजबूर हो जाता है, उसकी उम्मीद और आत्मसम्मान टूट जाता है। भ्रष्टाचार सिर्फ़ पैसे की हानि नहीं है, यह समाज में अन्याय और असमानता को स्थायी बना देता है।

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समाधान की राह

भ्रस्टाचार मुक्त भारत: भ्रष्टाचार मिटाना आसान नहीं है, लेकिन असंभव भी नहीं। सबसे पहले तो ज़रूरी है कि सरकारी प्रक्रियाओं को इतना सरल बनाया जाए कि लोग मजबूरी में रिश्वत न दें। हर काम पूरी तरह डिजिटल और पारदर्शी हो, जिसमें मानवीय हस्तक्षेप कम से कम हो। साथ ही, सख़्त और त्वरित सज़ा का प्रावधान होना चाहिए। जब तक दोषियों को तुरंत और कठोर सज़ा नहीं मिलेगी, तब तक यह बीमारी बढ़ती ही जाएगी।

लोकपाल और सीबीआई जैसी संस्थाओं को भी पूरी तरह स्वतंत्र बनाया जाना चाहिए ताकि वे किसी राजनीतिक दबाव में न आएँ। चुनावी चंदे को पारदर्शी बनाना होगा ताकि उद्योगपति और नेता का गठजोड़ टूट सके।

लेकिन सबसे महत्वपूर्ण है सामाजिक बदलाव। अगर हम खुद रिश्वत देकर काम कराते रहेंगे तो यह समस्या कभी खत्म नहीं होगी। बच्चों को स्कूल से ही सिखाना होगा कि ईमानदारी सिर्फ़ किताबों का विषय नहीं, बल्कि जीने का तरीका है। समाज को यह स्वीकार करना होगा कि भ्रष्टाचार सिर्फ़ “ऊपर वालों” की समस्या नहीं, बल्कि यह हर नागरिक की ज़िम्मेदारी है।

भ्रष्टाचार भारत की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है। यह सिर्फ़ विकास की रफ़्तार नहीं रोकता, बल्कि नागरिकों का भरोसा, उनका आत्मसम्मान और उनकी उम्मीद भी छीन लेता है। बड़े घोटालों से लेकर छोटे स्तर की रिश्वतखोरी तक, यह समस्या हर जगह फैली हुई है। लेकिन अगर कठोर कानून, पारदर्शी तकनीक और सामाजिक जागरूकता एक साथ काम करें, तो इस बीमारी को जड़ से खत्म किया जा सकता है।

आज ज़रूरत है कि हम इसे नारेबाज़ी तक सीमित न रखें। “इंडिया अगेंस्ट करप्शन” जैसे आंदोलनों ने हमें जगाया, लेकिन अब असली लड़ाई सिस्टम और समाज दोनों को मिलकर लड़नी होगी। भ्रष्टाचार तभी मिटेगा जब जनता और सरकार यह ठान लें कि अब और नहीं। और यही वह संकल्प है जो भारत को वास्तव में बदल सकता है।


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