सत्ता की जंग
बिहार चुनाव 2025
बिहार चुनाव 2025: सत्ता का संघर्ष हमेशा से हर राज्य में रहा है, अब का युग फेक न्यूज़, पेड न्यूज़ और न जाने क्या क्या लेके चल रहा है, ऐसे में खुद को जनता के सामने एक मजबूत स्थान पे दिखाना बहुत मुश्किल हो चला है| बिहार चुनाव अब ऐसा ही एक चक्रव्यूह है जिसमे सभी दल अपने पक्ष को मजबूत दिखाना चाहता है, कोई रैली कर के कोई नए नारे गढ़ के ऐसे में जनता के मन में क्या है वो तो जनता ही जाने लेकिन कुछ तथ्यों और आंकड़ो के हिसाब से अभी जो पिक्चर बन रही है वो बिहार के IAS की फैक्ट्री जैसे नामों से जाने जाते हुए भी एक अलग और पिछड़ेपन के दंश झेलता हुआ राज्य जैसा दिखाता है, जोकि उसके गौरवशाली इतिहास से अलग है|
कोई भी शाशन करे जनता के मुद्दे हल होना बहुत जरूरी है इस बार क्यूंकि जहाँ देश डेवलपमेंट के साथ बढ़ता हुआ दिख रहा है वही बिहार अभी भी बजट में तो कुछ लाभ लेता हुआ दिखा पिछले दिनों लेकिन करप्शन भी अपनी जड़े जमाये है बिहार में जिससे उसका बचना बहुत जरूरी है, और ये तभी सम्भव है जब एक स्टेबल सरकार बने और वो केंद्र से अपने हक की मांग कर सके, बेरोजगारी और महंगाई जैसे मुद्दे देश के ही नहीं बिहार के भी है और ये इस चुनाव में क्या असर डालते है ये देखना दिलचस्प होगा|
क्या चलेगा ध्रुवीकरण?
सबसे बड़ा सवाल ध्रुवीकरण की राजनीति बिहार में क्या असर डालती है ये भी देखने वाला होगा, क्यूंकि २०२४ में ४०० पार के सपने तो चकनाचूर हुए बीजेपी के और नितीश कुमार के सहयोग और चंद्रबाबू नायडू ने सरकार बनाने में मदद करी|
बिहार का चुनाव हमेशा राष्ट्रीय राजनीति की धुरी पर असर डालता है। 2025 का विधानसभा चुनाव भी कुछ ऐसा ही होने वाला है। इस बार मुकाबला है NDA और INDIA गठबंधन के बीच। लेकिन असली सवाल सिर्फ इतना नहीं कि सत्ता किसके हाथ में जाएगी। बड़ा सवाल यह है कि क्या बिहार अपने ऊपर लगे “पिछड़े राज्य” के ठप्पे से बाहर निकल पाएगा? और जनता किस आधार पर फैसला करेगी—जातीय समीकरणों पर, विकास के वादों पर, या गवर्नेंस की विश्वसनीयता पर?
1. बिहार का मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य
2025 की शुरुआत से ही सर्वेक्षण यह संकेत दे रहे हैं कि NDA फिलहाल बढ़त पर है। भाजपा और जेडीयू का संयुक्त वोट शेयर विपक्षी महागठबंधन (INDIA Bloc) से ऊपर दिख रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चेहरा और “नया बिहार” का नारा NDA के पक्ष में माहौल बना रहा है।
दूसरी ओर, महागठबंधन के भीतर भी हलचल तेज़ है। आरजेडी प्रमुख लालू यादव बीमारी से जूझने के बावजूद चुनावी रणनीति पर सक्रिय हैं। तेजस्वी यादव बेरोज़गारी और शिक्षा को मुद्दा बना रहे हैं। कांग्रेस ने भी सभी सीटों पर अपने उम्मीदवार खोजने का अभियान शुरू कर दिया है, ताकि उसे सिर्फ “सहायक दल” न समझा जाए।
2. NDA की बढ़त और अंदरूनी खटपट
हालांकि NDA का ग्राफ ऊपर जा रहा है, लेकिन इसकी सबसे बड़ी चुनौती है आंतरिक असंतोष।
- चिराग पासवान ने हाल ही में नीतीश कुमार की सरकार को “असफल” कहा और अपराध नियंत्रण को सबसे बड़ी नाकामी बताया।
- जेडीयू सांसद यह साफ कर चुके हैं कि अगर नीतीश कुमार को NDA का मुख्यमंत्री चेहरा नहीं माना गया, तो पार्टी गठबंधन छोड़ने पर विचार करेगी।
ये खटपट बताती है कि NDA का गठबंधन जितना बड़ा है, उतनी ही नाज़ुक डोर पर टिका भी है।
3. महागठबंधन (INDIA) की रणनीति
महागठबंधन का सबसे बड़ा सहारा है एंटी-इंकम्बेंसी (विरोधी लहर)। जनता का एक हिस्सा 17 साल के शासन से थका हुआ है। तेजस्वी यादव बेरोज़गारी को लगातार मुद्दा बना रहे हैं। राहुल गांधी ने “वोट चोरी” और “लोकतंत्र बचाओ” जैसे नारों के जरिए युवाओं और नए वोटरों को जोड़ने की कोशिश शुरू की है।
लालू यादव की अचानक सक्रियता ने भी कार्यकर्ताओं को ऊर्जा दी है। हालांकि, महागठबंधन के सामने चुनौती है कि क्या वह अपने अंतर्विरोधों को किनारे रखकर एकजुट होकर लड़ पाएगा?
4. चुनावी मुद्दों का बदलता रंग
बिहार की राजनीति में लंबे समय तक जातीय समीकरण और सामाजिक न्याय मुख्य मुद्दे रहे। लेकिन 2025 में परिदृश्य थोड़ा बदलता दिख रहा है।
- NDA विकास, इंफ्रास्ट्रक्चर और “नया बिहार” की बात कर रहा है।
- महागठबंधन बेरोज़गारी, पलायन और मतदाता सूची से नाम हटाने जैसे संवेदनशील मुद्दों को उठा रहा है।
- “विशेष राज्य का दर्जा” जैसे पुराने मुद्दे अब हाशिये पर चले गए हैं।
यह बदलाव दिखाता है कि बिहार की राजनीति धीरे-धीरे जातीय समीकरणों से हटकर विकास और गवर्नेंस की ओर बढ़ रही है।
5. “पिछड़े राज्य” की छाया
बिहार की सबसे बड़ी समस्या चुनावी नतीजों से बड़ी है — “पिछड़े राज्य” का ठप्पा।
- बिहार की प्रति व्यक्ति आय आज भी देश में सबसे कम है।
- स्वास्थ्य सेवाएं कमजोर हैं; गांवों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की स्थिति दयनीय है।
- शिक्षा व्यवस्था में सुधार के बावजूद पलायन जारी है। हजारों छात्र दिल्ली और कोटा पढ़ाई के लिए जाते हैं।
- बेरोज़गारी चरम पर है। बड़ी संख्या में युवा पंजाब, दिल्ली, मुंबई और गुजरात रोज़गार की तलाश में जाते हैं।
सवाल है कि चुनाव चाहे NDA जीते या महागठबंधन, क्या यह स्थिति बदलेगी?
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6. समाधान की संभावनाएँ
अगर बिहार को “पिछड़े राज्य” की छवि से बाहर लाना है, तो नई सरकार को इन मोर्चों पर गंभीरता से काम करना होगा:
- औद्योगिक निवेश को आकर्षित करना:
बिहार में बड़ी इंडस्ट्री का अभाव है। सरकार को टैक्स छूट और इंफ्रास्ट्रक्चर सुधार के जरिए निवेशकों को लुभाना होगा। - कृषि आधारित उद्योग:
राज्य की बड़ी आबादी खेती पर निर्भर है। फूड प्रोसेसिंग, डेयरी और वेयरहाउसिंग जैसी एग्रो-इंडस्ट्री लाखों नौकरियां पैदा कर सकती है। - शिक्षा और स्किल डेवलपमेंट:
तकनीकी शिक्षा, आईटी और व्यावसायिक प्रशिक्षण को बढ़ावा देना होगा। तभी पलायन रुकेगा। - इंफ्रास्ट्रक्चर सुधार:
सड़क, बिजली और डिजिटल कनेक्टिविटी पर और बड़ा निवेश जरूरी है। यही निवेशकों को खींचने की पहली शर्त है। - गुड गवर्नेंस:
भ्रष्टाचार और अपराध पर सख्त नियंत्रण के बिना निवेश और विकास की कोई योजना सफल नहीं होगी।
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7. जनता की उम्मीदें और चुनावी समीकरण
बिहार की जनता अब सिर्फ नारेबाज़ी नहीं चाहती। उनके सामने सबसे बड़े सवाल हैं:
- क्या बच्चों को रोजगार मिलेगा?
- क्या पलायन रुकेगा?
- क्या सुरक्षा और कानून-व्यवस्था सुधरेगी?
2025 का चुनाव यही तय करेगा कि जनता किस पर ज्यादा भरोसा करती है — NDA के “नए बिहार” पर या महागठबंधन की “परिवर्तन की पुकार” पर।
बिहार चुनाव 2025 एक सीधी राजनीतिक लड़ाई नहीं है। यह एक आर्थिक और सामाजिक चुनौती भी है। NDA और INDIA गठबंधन दोनों सत्ता पाने की जंग लड़ रहे हैं, लेकिन असली सवाल यह है कि कौन बिहार को “पिछड़े राज्य” की छाया से निकालकर विकास की ओर ले जाएगा।
अगर नई सरकार महज़ सत्ता की राजनीति में उलझी रही, तो नतीजा वही होगा जो दशकों से होता आया है — सत्ता बदलेगी, चेहरे बदलेंगे, लेकिन बिहार का ठप्पा जस का तस रहेगा।